सुखी जीवन जीने के तरीके हिंदी में ।
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हर व्यक्ति को परिवार और समाज में रहने के लिए जीवन में संघर्ष करना ही पड़ता हैं। हर व्यक्ति अपने तरीके से जीवन जीता हैं, लेकिन जीवन में सुखी होना और सफल जीवन जीना बहुत ही कम लोग ही जानते हैं। इसलिए आप इन बातों का ख्याल रखेंगे तो सुखी जीवन जी सकेंगे। हम आपको सफल और सुखी जीवन जीने के 10 मूल मन्त्र और सूत्र के बारे में बताएँगे जिन्हें अपना कर आप मुश्किल समय में भी सुखी रह सकते हैं।
तरीके
सुखी जीवन जीने के तरीके और उपाय :-
1. दुसरे के हाव-भाव की तरफ ध्यान देने की कोशिश करे। क्योंकि अकसर आपके आस-पास के लोग आपको यह नहीं बता पाते हैं, वह आपके बारे में क्या सोच रहे हैं। लेकिन अगर आप गौर करें तो उनका हाव-भाव पूरा हाल बता देंगे।
2. प्रत्येक व्यक्ति के साथ प्रेमपूर्वक मिले, चाहे वह किस भी क्यों न हो, उसे सम्मान दीजिये। इसके लिए आदर्श स्थापित करे।
3. हरेक स्तिथि को परफेक्ट बनाने में मत लगे। स्तिथि जैसी हो, उसे वैसी ही रहने दे। क्योंकि कुछ चीजों को परफेक्ट बनाने के चक्कर में अकसर हम बहुत कुछ बर्बाद कर देते हैं।
4. खुद के लिए समय निकाले। जब भी सुकून भरी लम्बी सांस लेने का दिल करे तो जरूर ले। अपनी जरूरतों को प्राथमिकता देना सीखे।
5. परिवार आप ही हैं, जैसे भी हों, जिस परिस्तिथि में भी हो, उसका मज़ा ले। भविष्य के बारे में सोचना छोड़ दे, क्योंकि भविष्य किसी ने देखा नहीं हैं।
6. हमेशा सोचिये, आज आप अपने पल को कितना अच्छा फील कर रहे हैं। यह आपकी अच्छी किस्मत ही हैं और इसी चलते आप इस समय का मज़ा ले रहे हैं।
7. जहा जरूरत हो, वहां अच्छी बातें करना और दुसरो को बताना सीखिए। ऐसा करने से आपके अन्दर कॉंफिडेंट आएगा और आप अच्छा फील करेंगे।
इस स्पॉट में सद्गुरु बता रहे कि इससे फर्क नहीं पड़ता कि आप क्या कर रहे हैं, अगर आपका दिमाग चल रहा है, तो आपके भीतर ये प्रश्न जरुर उठेगा कि “मैं इसमें क्यों फंस गया?” या “मैं यहां क्यों हूँ?” जानते हैं कि ऐसा क्यों होता है –
आध्यात्मिक मार्ग पर चल रहे बहुत से लोग जब सुबह पांच बजे सोकर उठते हैं तो अकसर उनके मन में ये सवाल आते हैं- ‘आखिर मैं यह सब क्यों कर रहा हूं? जब सारी दुनिया सुबह आठ बजे सोकर उठती है तो मैं क्यों सुबह पांच बजे उठता हूं? जब हर व्यक्ति दिन में पांच बार खाता है तो मैं ही सिर्फ दो बार भोजन क्यों करता हूं? हर व्यक्ति धरती मां की तरह प्रसन्न दिखाई देता है, फिर मैं ही ऐसा क्यों हूं?’ (धरती की ओर गोलाई की तरफ इशारा करते हुए सद्गुरु कहते हैं) यह आकार तो धरती माता का है, मानव आकार ऐसा नहीं है, फिर भी बहुत से लोग उस जैसा बनने की कोशिश कर रहे हैं।
तो अकसर यह सवाल उठता है कि मैं यह सब क्यों कर रहा हूं? हालांकि पारंपरिक तौर पर वह यही कहेंगे-‘आपको आत्म साक्षात्कार होना चाहिए, आपको ईश्वर का साक्षात्कार होना चाहिए। आपको मुक्ति पाने की कोशिश करनी चाहिए।’
लेकिन सुबह-सुबह आपका मन कहेगा- ‘मुझे नहीं चाहिए मुक्ति। मैं तो बस सोना चाहता हूं। मैं ईश्वर के दर्शन नहीं चाहता मैं तो बस अच्छा खाना चाहता हूं। भगवान से मिलने में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है, मेरी असली दिलचस्पी तो पड़ोस में रहने वाली लड़की या लड़के से मिलने में है।’ ऐसे विचार मन में आएंगे, क्योंकि इन विचारों के पीछे एक रासायनिक आधार होता है, जबकि आध्यात्मिक चाहतों के पीछे किसी तरह का रासायनिक आधार नहीं होता। फिर भी यह ‘क्यों’ का सवाल बहुत बड़ा बनकर हमारे सामने आता है।
मानव मन की यही प्रकृति है
अगर आपमें किसी कीड़े जितनी समझ होती तो आपके दिमाग में यह ‘क्यों’ होता ही नहीं। अगर आपकी समझ किसी भैंस जितनी होती, जिसका दिमाग यानी कम से कम सिर तो आपसे ज्यादा बड़ा होता है तो भी ऐसी समस्यां नहीं होती।
असली समस्या है वह सृष्टि, जो आप देखते हैं, अगर आप इसे नजदीक से देखें तो आपको हर चीज में एक विरोधाभास नजर आएगा। अगर आप किसी एक ही चीज में डूबे रहेंगे तो आपको लगेगा कि वह चीज अपने आप में पूर्ण है। जब आपके हॉरमोन सक्रिय होकर आपके शरीर और दिमाग को नियंत्रित करने लगते हैं तो आपको उन चीजों में ही अपने जीवन का असली मकसद नजर आने लगता है। जब आपकी शादी हो जाती है तो आप सोचने लगते हैं कि ‘मैं क्यों इस जंजाल में फंस गया।’ यहां सवाल यह नहीं है कि आपकी जिदंगी ठीक चल रही है या नहीं। सवाल है कि आपका दिमाग काम कर रहा है या नहीं। अगर आपका दिमाग काम कर रहा है तो फिर मायने नहीं रखता कि जिदंगी कितने सुंदर ढंग से चल रही है। तब भी आपके दिमाग में यह आएगा ही कि ‘मैं इसमें क्यों फंस गया?’
अगर आप सृष्टि की मूल प्रकृति पर गहराई से गौर करेंगे तो फिर आपको विरोधाभासों में जीना सीखना होगा, जो आपको बेहद समझौतावादी बना देगा। जो व्यक्ति पूरी तरह अंधा है, जिसने कभी अपनी भावनाओं, विचारों और कार्यों पर कभी ध्यान नहीं दिया, केवल वही व्यक्ति सोच सकता है कि वह पूरी तरह से ठीक ठाक है। वर्ना अगर आप गौर करेंगे, चीजों पर ध्यान देंगे तो आपको समझ में आएगा कि इस सबमें कितना जबरदस्त समझौता छिपा हुआ है। अगर आपका दिमाग चलता है तो फिर आपको जहां कही भी रखा जाए, आपके भीतर से एक ही सवाल उठेगा- ‘मैं यहां क्यों हूं?’ हालांकि लोग अपने दिमाग को चलने से रोकने के लिए तमाम तरह की कोशिशें करते हैं, लेकिन वे कामयाब नहीं हो पाते। अगर आपका दिमाग सक्रिय है तो ‘क्यों’ फौरन हाजिर हो जाएगा। हां, अगर आपका दिमाग चलना बंद कर चुका है तो आपके दिमाग में यह ‘क्यों’ का सवाल मृत्यु की घड़ी में ही सिर उठाएगा।
ये सवाल जितना जल्दी उठे उतना अच्छा है
मेरा यह आशीर्वाद है कि यह सवाल- ‘मैं क्यों जी रहा हूं? मैं क्यों यह कर रहा हूं?’ ये सारे सवाल जिंदगी में जितनी जल्दी हो सकें, आपके दिमाग में आने चाहिए, ताकि आपके भीतर वो उर्जा और ताकत रहे, जिससे आप इनके जवाब ढूंढ सकें।
*Thought of the day*
*दुनिया के लाखों पेड़ गिलहरियों की देन हैं ! वे खुराक के लिए बीज जमीन में छुपा देती है…और फिर जगह भूल जाती है…*
*अच्छे कर्म करिये और भूल जाईये! समय आने पर फलेंगे जरूर…*
सुप्रभात
*🙏आपका दिन मंगलमय हो🙏*
*राधे राधे*